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चाग्नेयां च रुरुः पातु दक्षिणे चण्ड भैरव: । ।

सद्योजातस्तु मां पायात् सर्वतो देवसेवितः



इति श्रीब्रह्मकवचं भैरवस्य प्रकीर्तितम् ॥ २१॥

ॐ हृीं पाधौ महाकालः पातु वीरा सनो ह्रुधि

वाद्यं बाद्यप्रियः पातु भैरवो नित्यसम्पदा।।

बटुक भैरव कवच का व्याख्यान स्वयं महादेव ने किया है। जो इस बटुक भैरव कवच का अभ्यास करता click here है, वह सभी भौतिक सुखों को प्राप्त करता है।

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सद्योजातस्तु मां पायात् सर्वतो देवसेवितः।।





ರಕ್ಷಾಹೀನಂತು ಯತ್ ಸ್ಥಾನಂ ವರ್ಜಿತಂ ಕವಚೇನ ಚ

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